मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप
सहसवान/बदायूं: इस वक्त लगभग दुनिया के सभी बड़े और ताकतवर देश कोरोना वायरस के संक्रमण के खौफ के साए मे ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। दुनिया मैं वायरस का संक्रमण लगभग 785,000 लोगों को हो चुका है और पूरी दुनिया मैं लगभग 37000 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 165000 लोगों को इस महामारी से बचा लिया गया है।अमेरिका जैसा महाशक्तिशाली राष्ट्र मे सबसे अधिक लगभग 163000 लोग इस महामारी से पीड़ित हैं। आज इस महामारी के इतना विशाल रूप धारण करने के कारण हमें यह सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्या हुआ और इस दुनिया में ऐसा क्या हो रहा है कि अचानक पूरी दुनिया में कर्फ्यू जैसे हालात पैदा हो गए हैं? क्या पूरी दुनिया के दानिश वर बुद्धिजीवी राजनेता धार्मिक प्रवृत्ति के लोग अमायदीने शहर सभ्य समाज के लोग और देश के आम नागरिक अपनी अपनी अंतरात्मा और अपने जमीर से पूछें ऐसा हमने क्या किया कि हमारा रब और हमारा ईश्वर हमसे इतना नाराज हो गया कि उसने अपने घर के दरवाजे भी हमारे लिए बंद कर दिए। हिंदुस्तान के एक मशहूर व मारूफ शायर हजरत अल्लामा इकबाल का एक शेर है…..वतन की फिक्र कर ऐ नादान मुसीबत आने वाली है तेरी बरबादियों के मशवरे हैं आसमानों में, न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों तुम्हारी दास्तां भी ना होगी दस्तानो मे। दरअसल अल्लामा इकबाल का लिखा हुआ यह यह शेर आज सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के बाशिंदों के लिए बिल्कुल सटीक बैठता है जब कोई भी समाज या देश के हुक्मरान या देश को चलाने वाली सरकारें हद से तजावुस करती हैं या अपनी सीमा को लाँघती है या फिर जुल्म की इंतहा करती हैं या कुदरत के नियमों के साथ छेड़छाड़ करती हैं तो उसके परिणाम भी भयंकर आते हैं दरअसल यह कोरोना का कहर नहीं बल्कि प्रकृति का प्रकोप है जो हमारे सामने कोरोना वायरस का रूप धारण करके आया है इस वायरस से बचने के तरीके तो तमाम अखबार और न्यूज़ चैनल हमें रोज बता रहे हैं और हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी भारत की जनता से अपील की है जनता 21 दिन तक अपने घरों से बाहर ना निकले सिवाय चिकित्सक मेडिकल स्टाफ और जीवन यापन करने की आवश्यक वस्तुओं के विक्रेता। पर यह भी जरूरी है कि जिस तरह की यह बीमारी है उससे बचने के लिए इस तरह के एहतियाती कदम उठाना अति आवश्यक है। जान है तो जहान है अपने जीवन को बचाने के लिए प्रिकॉशन को तो फॉलो करना ही पड़ेगा मगर इतना बड़ा कदम उठाने से पहले क्या यह सोचना जरूरी नहीं था कि जो लाखों लोग दूरदराज से रोजी रोटी की तलाश में 200 किलोमीटर से लगभग 1500 किलोमीटर की दूरी तक अपने परिवार से दूर हैं और ऐसे लाखों लोग जिनका जीवन सिर्फ और सिर्फ होटल के भोजन पर ही निर्भर करता है अचानक पूरा देश लॉक डाउन करने से उनका जीवन कैसे चलेगा और वो लाखों लोग जिंदा रहने के लिए भोजन कहां करेंगे। विशेषकर दिल्ली के रहने वाले गरीब मजदूरों के सामने आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति उत्पन्न हो गई वह बेचारे घर से बाहर निकले तो करोना से मौत और अगर घर में रहे तो भूक से मौत हालांकि दिल्ली जैसे शहर में केंद्र व राज्य सरकार ने भोजन का अब इंतजाम किया है मगर सरकार की इस सुविधा का लाभ कितने लोग उठा पाएंगे और सरकार कितने लोगों को खाना खिलाने की व्यवस्था कर पाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा जो लोग अपनी पूरी जिंदगी के सपनों का जनाजा खुद अपने ही सर पर रखकर 1000 या उससे अधिक किलोमीटर पैदल चलने के लिए निकल पड़े हैं उनके बारे में एक बात तो यकीनन कही जा सकती है कि उन्हें ना तो सरकार से कोई उम्मीद है और ना ही समाज से वे सिर्फ अपने हौसले के भरोसे जिंदा है और अपने अपने वतन पहुंचने के लिए भारत का गरीब लाचार नागरिक पद यात्रा पर निकल चुका है भूक से तड़पती हुई उनकी आंते ओर मायूसी की गर्त में डूबी हुई उनकी आंखें हमारे इस सभ्य समाज से एक सवाल पूछ रही है कि क्या इस दुनिया में गरीब होना कोई पाप है व्यक्तिगत रूप से मेरा एक सिद्धांत रहा है कि मानवता की सेवा करना ही वास्तव में ईश्वर की सेवा करने के समान हैं बीते आठ 10 दिन मैं यह देखा गया कि इस धरती पर रहने वाले इंसान अलग-अलग रूप में दिखाई दिए कहीं इंसान फरिश्ते या देवता के रूप में लोगों की मदद करते हुए लोगों को खाना खिलाते हुए दिखाई दिए बिना उनका नाम धर्म या जाति के बारे में पूछते हुए कुछ लोगों ने निस्वार्थ उन गरीब और लाचार लोगों की मदद की वास्तव में इस दुनिया का निजाम ईश्वर ऐसे ही लोगों की वजह से चला रहा है जिस दिन से लॉक डाउन है उस दिन से व्हाट्सएप और फेसबुक पर ज्यादातर दिल को दुख देने वाली वीडियो देखे जा रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे भी वीडियो देखे गए जहां लोग दिल्ली से आने वाले या और किसी शहर से आने वाले लोगों की सभी धर्मों के लोग चाहे वह हिंदू हो मुसलमान हो सिख हो या इसाई हो बिना किसी भेदभाव के लोगों की मदद करते हुए दिखाई दिए। मैंने कई ऐसे वीडियो देखें जिसमें माथे पर तिलक लगाए हुए हिंदू भाई मुसलमान लोगों को खाना खिला रहे हैं और कहीं मुसलमान भाई सर पर टोपी लगाकर हिंदू भाइयों को खाना खिला रहे हैं एक वीडियो मैने देखा एक सिख भाई अपनी जान जोखिम में डालकर स्लो मोशन में चलती हुई ट्रेन मैं मुसाफिरों को खाने का पैकेट दे रहे हैं मैं व्यक्तिगत रूप से पूरी जिम्मेदारी से यह कह रहा हूं को रोना वायरस के प्रकोप से बचने और उससे लड़ने के लिए हमारा पूरा हिंदुस्तान आज एक जगह खड़ा है जो बहुत ही खुशी की बात है बीते कुछ दिनों में हमारे मुल्क में जो सांप्रदायिकता का जहर घोला गया था वो आज पूरी तरह से खत्म हो गया इस वायरस ने हमें यह सबक सिखा दिया कि मुसीबत के वक्त कोई किसी का नहीं होता सिर्फ इंसान ही इंसान के काम आता है मैं आशा करता हूं इस मुसीबत के टल जाने के बाद हम इस बात को अपनी जीवन भर याद रखें कि मानवता की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है ।इसके विपरीत शक्ल सूरत से इंसान दिखाई देने वाले लोग मजबूर और लाचार लोगों की मजबूरी का और लाचारी का फायदा उठाते हुए हैवान भी दिखाई दिए दुनिया का कोई भी धर्म हमें यह सीख नहीं देता की जब देश या समाज में भुखमरी की हालत पैदा हो जाएं तो आप अपने गोदाम में रखा हुआ गेहूं दाल चावल तेल घी मसाले या अन्य खाद्य सामग्री का मूल्य दोगुना कर दें इस दौरान जहां कुछ लोगों ने अपनी जमा पूंजी जरूरतमंद लोगों की सेवा में निस्वार्थ खर्च कर दी वहीं कुछ दुष्ट लोगों ने ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए खाद्य सामग्री पर दाम बढ़ा दिए हिंदुस्तान में न जाने कितनी ही एनजीओ चलती हैं और ऑन पेपर सामाजिक कल्याण के कार्य करती हैं कहां गई वो एनजीओ जिन्हें भूखे प्यासे वह बेहाल गरीब मजदूर जो अपने घर पहुंचने के लिए पैदल ही चल पड़े और उनकी आंखें उस देवता स्वरूप इंसान को तलाशती रही जो उन से यह कह सके कि तुम अपना कर्म स्थान छोड़कर मत जाओ हम तुम्हारे साथ हैं हालांकि दिल्ली राज्य सरकार ने देर से ही सही मगर कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं जो सराहनीय हैं यह सोचने का विषय है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि लगभग दुनिया के ज्यादातर शक्तिशाली देश एक साथ इस महामारी की चपेट में आ गए शायद संसार में ऐसा पहली बार हुआ होगा इस प्रश्न का उत्तर हासिल करने के लिए हमें थोड़ा सा अतीत में जाना होगा पूरी दुनिया इस बात को जानती है की अलग-अलग समय पर अलग-अलग देशों में जैसे चीन अमेरिका फ्रांस इटली स्पेन और यूरोप महाद्वीप के अन्य देशों में महिलाओं के नकाब या बुर्का पर पाबंदी लगती रही है या पाबंदी लगाने की आवाजें उठती रही हैं कहीं मस्जिदों पर कहीं मंदिरों पर और कहीं चर्चों पर और विशेषकर मस्जिदों पर हमले किए गए हद तो जब हो गई अपने आप को सभ्य और विकसित कहने वाले देशों में ईश्वर के द्वारा भेजे गए शांति के दूत प्यारे नबी हजरत मोहम्मद साहब सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम का कार्टून बनाकर उनका मजाक बनाया गया यहां में अल्लामा इकबाल का एक और शेर कोड करना चाहूंगा अदलो इंसाफ फकत मैंहशर यानी कयामत पे मोकूफ़ यानी निर्भर नहीं जिंदगी खुद भी गुनाहों की सजा देती है।
यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि किसी व्यक्ति को मेरे किसी शब्द से कोई कष्ट हो इस लेख में कोई त्रुटि हो तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं।
क्रमशः